क्रोध क्या है? यह प्रत्येक प्राणी में होता है.कोई इसे मनोविकार कहता है, कोई इसे सब बुराइयों की कुंजी मानता है, तो अन्य सब अनर्थो की जड़.सभी इससे परेशान हैं पर कोई भी इसे छोड़ नहीं पाता.
भगवद्गीता में श्री भगवान कहते हैं-
क्रोध से सम्मोह पैदा होता है अर्थात बुद्धि सम्मोहित होकर अविचार उत्पन्न कर देती है। सम्मोह से स्मृति नष्ट हो जाती है। स्मृति नष्ट होने से बुद्धि का नाश हो जाता है और जिसकी बुद्धि का नाश हो जाय वह अपनी स्वरूप स्थिति को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता और जिस स्थिति को उसने प्राप्त भी किया है उससे गिर जाता है।
श्री भगवान के वचन हैं रजोगुण से जन्म लिए काम और क्रोध ही मनुष्य को पाप की ओर ले चलते हैं। यह बहुत खाने वाले हैं और कभी तृप्त नहीं होते हैं। यह बड़े पापी हैं तथा आत्मोन्नति के मार्ग में यह प्रबल शत्रु हैं।
क्रोध क्यों होता है?
रजोगुण क्रोध के जन्म के लिए उत्तरदायी है.सृष्टि त्रिगुणात्मक है अतः रजोगुण और क्रोध अपरिहार्य हैं.
रजोगुण क्या है?
यह क्रिया शक्ति है जो किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी है.इस क्रिया शक्ति में जब तमोगुण –अज्ञान मिल जाता है तो अज्ञान की मात्रा के अनुसार अविवेक का जन्म होता है. अधिक क्रियाशक्ति + अधिक अज्ञान = अधिक क्रोध. क्रियाशक्ति और अज्ञान की मात्रा कम होने पर क्रोध की मात्रा कम होती है.इसी प्रकार क्रिया शक्ति अथवा रजोगुण जब विवेक (सतोगुण-ज्ञान )से मिलता है तो ज्ञान की मात्रा के अनुसार अनुशासन एवम मर्यादा का जन्म होता है. इसी आधार पर संसार में क्रोध के भिन्न भिन्न परिणाम देखे जा सकते हैं.
रजोगुण के कार्य का तरीका
रजोगुण आसक्ति को जन्म देता है.
पुरुष में आसक्ति इतनी प्रबल होती है कि यह आसक्ति नाश न होने के कारण चंचल स्वभाव वाली इन्द्रियां, रात दिन प्रयत्न करने वाले बुद्धिमान साधक के मन को अपने प्रभाव से बल पूर्वक हर लेती है अर्थात यत्नशील बुद्धिमान पुरुष भी इन्द्रियों के वेग के सामने लाचार हो जाता है।
विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। यदि किसी एक इन्द्रिय विषय का थोड़ा भी चिन्तन हो तो निरन्तर अभ्यासी पुरुष भी उस विषय की ओर बहने लगता है। सकामी पुरुषों की अनेक इच्छायें और उनकी आसक्ति से उत्पन्न संवेग का अनुमान लगाया जा सकता है। आसक्ति से काम उत्पन्न होता है, कामना पूर्ति में यदि बाधा होती है तो क्रोध उत्पन्न होता है। अग्नि के समान सदैव असंतुष्ट यह काम क्रोध का कारण है.
जिस प्रकार धुएं से अग्नि ढकी रहती है तथा दर्पण मैले से ढक जाता है, जेर से गर्भ ढका रहता है उसी प्रकार विवेक हमेशा काम-क्रोध से ढका रहता है।
रजोगुण सदा जीव को बहलाता है क्योंकि राग रूप रजोगुण का जन्म कामना और आसक्ति से होता है और संसार के विभिन्न रूपों की कामना उनमें आसक्ति प्राप्त होने पर बढ़ती ही जाती है।
तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न होता है, यह विवेक को पूर्ण रूपेण भ्रम में डाल देता है, इनके द्वारा मन मूढ़ बन जाता है, बुद्धि भ्रमित हो जाती है
उपर्युक्त परिणामों से सुस्पष्ट है कि अहँकार, क्रोध का वास्तविक कारण नहीं हैं,न इसे समाप्त किया जा सकता है क्योंकि रजोगुण क्रोध के जन्म के लिए उत्तरदायी है. इसकी केवल दिशा बदली जा सकती है. सत्वगुण की वृद्धि करके अथवा विवेक द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
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