भगवदगीता-भारत और महाभारत
भगवद्गीता की पृष्ठ भूमि- भगवद्गीता का प्रारम्भ युद्ध का मैदान है. कौरव और पाण्डव सेना युद्ध के लिए जमा हैं, दोनों एक ही कुल के हैं परन्तु कौरव घोर आसुरी वृत्ति के हैं तो पाण्डव दैवी सम्पदा सम्पन्न हैं.
आसुरी सम्पदा-
भगवद्गीता के अनुसार आसुरी सम्पदा सम्पन्न मनुष्यों के लक्षण -
आस असंभव आसरे, दम्भ मान मद युक्त
असत ज्ञान धारण करें, भ्रष्ट आचरण पार्थ।। 10-16।।
ये दम्भ, मान, मद से युक्त मनुष्य किसी भी प्रकार से पूर्ण न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर संसार में विचरते हैं। यही नहीं उनमें अज्ञान के कारण अनेक भ्रान्ति पूर्ण बातें मस्तिष्क में भरी रहती है, जिसके कारण उनका आचरण भ्रष्ट रहता है। जगत के प्राणियों को पीड़ित करने वाले, उन्मत्त मनमाना पापाचरण करते हैं।
मैंने मारा शत्रु यह, और अपर भी हन्य
मैं ईश्वर भोगी सुखी, मैं ही सिद्ध बलवान।। 14-16।।
इस शत्रु को मैंने मार डाला है या नष्ट कर दिया कल दूसरे को भी मटियामेट कर दूंगा मैं मालिक हूँ, मैं ही ईश्वर हूँ, मैं ही बलवान हूँ, मैं ही सिद्ध हूँ, मैं ही भोगने वाला हूँ, सब मेरे आधीन हैं, मैं ही पृथ्वी का राजा हूँ, यह सब मेरा ही ऐश्वर्य है आदि।
दर्प कामना क्रोध बल और अहं मन माहि
निन्दा रत कर द्वेष मम, स्वयं अन्य बस देह।। 18-16।।
यह आसुरी वृत्ति के पुरुष अहंकार, बल, घमण्ड, कामना, क्रोध आदि के आश्रित रहते हैं। सदा दूसरों की निन्दा करते हैं, इस प्रकार अपने शरीर में तथा दूसरे के शरीर में स्थित परमात्मा से अहंकार और मूढ़ भाव के कारण द्वेष करते हैं।
कौरव और उनके साथी आसुरी सम्पदा का प्रतिनिधत्व करते हैं. कौरवों द्वारा बचपन से पांडवों की हत्या का प्रयत्न करना जैसे भीम को जहर देना, इसके बाद लाख के भवन में जिन्दा जलाने का षड्यंत्र, छल से राज्य हडपना, पांडवों की स्त्री को नग्न करने का प्रयत्न आदि कई प्रकार से पांडवों के विनाश की युक्ति करना. लगातार शान्ति के प्रस्तावों को ख़ारिज करना, शान्ति के प्रस्तावों की खिल्ली उडाना आदि.
दैवी सम्पदा-
सत्य अहिंसा क्रोध नहिं, त्याग अपैशुन शान्ति
अनासक्ति ह्री भूत दया,व्यर्थ यत्न नहिं कोमल हृदया।। 2-१६।।
मन वाणी कर्म से किसी को दुख नहीं देना, सत्य अर्थात जिसके संशय और अज्ञान नष्ट होकर ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है। त्याग अर्थात अहं बुद्धि का त्याग, देह भावना का त्याग विशुद्ध ज्ञान की स्थिति (जहाँ शान्ति और आनन्द होता है), किसी की निन्दा न करना, किसी के दोष न देखना, सब प्राणियों में बिना इस विचार के कि वह अच्छा है या बुरा, सभी की बिना स्वार्थ के भलाई करना, किसी भी विषय का संयोग होने पर उसमें आसक्ति नहीं होना, जो संसार के हित के लिए अपने हृदय में कोमलता रखते हैं, अपने गुणों की चर्चा होने पर जो लजा जाते हैं, जिनमें व्यर्थ चेष्टा का अभाव हो गया है अर्थात जिसने मन को वश में करके इन्द्रियों को अपाहिज सा बना दिया है।
तेज क्षमा अद्रोह धृति, शौच नहिं अभिमान
देव संपदा जन्म जेहिं, लक्षण उसके पार्थ।। 3-१६।।
तेज अर्थात आत्मा की ओर मन की गति से जो भाव उत्पन्न होता है वह तेज है, क्षमा, अपने प्रति अपराध करने वाले को भी अहंकार हुए बिना अभय देना, धृति, दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट आने पर भी धैर्य धारण करना, शान्त रहना, जो बाहर भीतर से शुद्ध हो, जो किसी भी प्राणी से शत्रु भाव न रखे तथा सभी प्राणियों का हित चाहने वाला हो, अपने में पूज्यता के अभिमान का अर्थात पूज्यता से जिनमें संकोच होता है; यह 26 गुण दैवी सम्पदा को लेकर जन्मे पुरुष में होते हैं।
पाण्डव और उनके साथी दैवी सम्पदा का प्रतिनिधत्व करते हैं. बार बार कौरवों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करते हैं. अंतिम समय तक शन्ति की कोशिश करते हैं. शान्ति के लिए स्वयं श्री भगवान शान्ति दूत बनते हैं और पांडवों एवम द्रोपदी से कहते हैं तुम्हारे अपमान से अधिक मनुष्य जीवन का मूल्य है परन्तु दूसरी ओर घोर आसुरी वृत्ति के आतंकी कौरव हैं जो अपनी क्रूर वृत्ति के कारण पांडवों का केवल विनाश चाहते हैं.
युद्ध – युद्ध भूमि में सेना युद्ध के लिए जमा है. आसुरी वृत्ति के आतंकी कौरव और उनके सहयोगी जो अर्जुन के किसी न किसी रूप में रिश्तेदार हैं को देखकर अर्जुन विषाद को प्राप्त हो जाता है. युद्ध न करने की बात कहता है. आज भी लगभग हमारा देश अर्जुन रूपी मानसिकता से गुजर रहा है. स्वतंत्रता प्रप्ति के पश्चात लगातार पाकिस्तान हमारे देश के प्रति घात आघात करता रहा है. आतंकी गतिविधियां और उसके अपराधों के प्रति भारत की क्षमा और शान्ति की कोशिश पांडवों की तरह है.
घोर आसुरी वृत्ति के लोग जगत के नाश के लिए पैदा होते हैं. ऐसे लोग अमेरिकन ड्रोन की भाषा ही समझते हैं. समझने-समझाने की भाषा यह नहीं जानते हैं.ऐसी प्रकृति को समूल नष्ट करना पड़ता है.
अर्जुन को विषाद से कायरता रूपी दोष उत्पन्न हो गया था जिसका निवारण श्री कृष्ण चंद्र जी ने किया परन्तु 54 वर्षों से भारत सरकार क्लैव्यता से जकड़ी है और समझती है कि आतंकियों, उनके आका पाकिस्तान और उनके घरेलू हितेषियों में सुधार हो जायेगा पर यह कभी संभव नहीं. श्री भगवान भगवद्गीता में कहते हैं घोर आसुरी वृत्ति के लोग जगत के नाश के लिए पैदा होते हैं. इनको और इनके साथियों को चाहे वह घर के भीतर हों अथवा घर के बाहर अथवा भीष्म, द्रोणाचार्य के समान अपने ही क्यों न हों नाश करना आवश्यक है अन्यथा यह जगत का नाश कर देंगे. अमेरिका इस बात को समझ गया है और इन आतंकियों का नाश कर रहा है काश भारत सरकार भी इस बात को समझ ले और क्लैव्यता से बाहर आ जाय.
यह उदाहरण समझाने की दृष्टि से उन लेखकों एवम ब्लोगर्स के लिए भी है जो मिथ्या दृष्टि को आधार मानकर चलने वाले हैं जिनका ज्ञान नष्ट हो गया है, जिन की बुद्धि तामसी है, घरेलू मक्खी की तरह इधर उधर भिन-भिनाते रहते हैं. मक्खी गन्दगी और साफ जगह बिना विवेक के बैठती है और जहाँ भी बैठती है केवल गन्दगी फैलाती है. इसी प्रकार आसुरी वृत्ति के लोग निन्दनीय कर्म में लगे हुए कहते हैं कि भगवदगीता युद्ध उन्माद को बड़ाने वाला, युद्ध भड़काने वाला ग्रंथ कहते हैं और श्री भगवान को दोष देते हैं.
कोई भी बुरी प्रकृति जो जगत के लिए अहितकारी है को नष्ट करना, दैवी सम्पदा को स्थापित करना धर्म है और इस धर्म कार्य के लिए कायरता रूपी मानसिक नपुंसकता को दूर करना निश्चय ही श्रेष्ठ कार्य है. प्रत्येक काल में आतंकियों को समूल नष्ट करना और उनके हितेषी चाहे कितने ही अपने हों या श्रेष्ठ हों का भी विनाश आवश्यक है अन्यथा विश्व शान्ति खतरे में पड़ जायेगी. शान्ति और धर्म की स्थापना के लिए तथा युद्ध भूमि में मानसिक नपुंसकता को दूर करने के लिए आत्मतत्त्व का ज्ञान विश्व की अमूल्य धरोहर है. सम्पूर्ण भगवदगीता ग्रन्थ शास्त्र का प्रत्येक श्लोक पूर्णतः वैज्ञानिक एवम तार्किक रूप से सत्य को प्रतिष्टित करता है.यह मनुष्य की अस्मिता का विज्ञान है.
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